गलती पासपोर्ट वालों ने की और उसकी सजा प्रदेश के राशनकार्ड वाले भुगत रहे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से उनकी रोजीरोटी छिन गई। बेरोजगार हो गए। आर्थिक तंगी ऐसी आ गई कि घर में दो समय चूल्हा भी नहीं जल पा रहा है। बच्चों की पढ़ाई बाधित हो गई। घर में कोई बीमार हो, तो उसका उपचार कराना भी मुश्किल हो गया है। कुछ दिन और ऐसे ही चलता रहा, तो गरीब कोरोना से नहीं भूख और आर्थिक तंगी से मर जाएंगे।
दरअसल रायपुर सहित प्रदेश के करीब 80 फीसदी धनाढ्य वर्ग, नेता और अफसरों के रिश्तेदार और बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं। कामधंधा करते हैं या फिर घूमने-फिरने जाते रहते हैं। वहां ऐशोआराम की जिंदगी जीने के बाद इन्हें रायपुर या प्रदेश रास नहीं आता है। यहां की कमाई से विदेशों में लग्जीरियस लाइफ जीते हैं, लेकिन वहां की कमाई से यहां की शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ करना नहीं चाहते हैं। अब जब कोरोना वॉयरस उन देशों में फैल गया है, त
ब वहां से इन धनाढ्य वर्ग, नेताओं-अफसरों के बच्चों व रिश्तेदारों को छत्तीसगढ़ की याद आ रही है। जान बचाने के लिए वहां से भागकर प्रदेश लौट आए हैं। और अपने साथ खतरनाक कोरोना वॉयरस भी लेकर आए हैं। अब इससे रायपुर सहित प्रदेश भर में संक्रमण फैलने लगा है। इसके फैलाव को रोकने प्रदेशभर में लॉकडाउन और धारा 144-1 लगाया गया है, जिससे प्रदेश की गरीब जनता, किसान और आम लोगों का जीना मुहाल हो गया है। बीमारी से मौत का डर तो सता ही रहा है, साथ ही रोजगार बंद होने से भूखमरी की समस्या पैदा हो गई है।
पासपोर्ट वालों की लापरवाही का परिणाम अब राशन कार्ड वाले भुगत रहे हैं।
पासपोर्ट वालों को केवल कोरोना की चिंता, दूसरों को रोजगार की
शहर के पासपोर्ट वालों को केवल कोरोना वॉयरस की चिंता है, जबकि राशन कार्ड वाले गरीब और आम लोगों को कोरोना वॉयरस के साथ ही रोजीरोटी और अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता है। अगर कोरोना वॉयरस से बच भी जाएंगे, तो आर्थिक स्थिति को संभालना मुश्किल होगा। फैक्ट्रियों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर, रिक्शाचालक, चाय वाला और सड़कों पर ठेले लगाकर जीवन-यापन करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं। निजी संस्थाओं में छोटे-मोटे काम करके गुजारा करने वालों को कुछ सूझ नहीं रहा। आखिर वह क्या करें। उनका परिवार कैसे चलेगा? कोरोना वॉयरस से संक्रमित होने से पहले आमआदमी मरने के कगार में पहुंच गया है।
अगर वहीं रूक जाते, तो क्या होता?
कोरोना वॉयरस फैलने के बाद विदेशों से छत्तीसगढ़ आने वाले अगर कुछ दिन और वहीं रूक जाते, तो क्या होता? क्या उनका उस देश में बेहतर इलाज नहीं हो सकता था? क्या उन्हें वहां की सरकार उपचार की सुविधा मुहैया नहीं कराती? क्या वहां की सरकार उन्हें वापस जाने के लिए दबाव डाल रही थी? क्या वे आर्थिक तंगी का सामाना कर रहे थे? अगर यह सब नहीं था, तो प्रदेश के हित और यहां के लोगों की सुरक्षा के लिए कुछ दिन और विदेशों में रह सकते थे। स्थिति सामान्य होने के बाद लौट जाते। इससे लोगों की जान खतरे में तो नहीं पड़ती।
आए हैं, तो सावधानी में चूक क्यों
विदेशों से लौटे सभी लोगों को जिला प्रशासन ने होम आइसोलेशन में रखा है। यहां भी लापरवाही सामने आ रही है। होम आइसोलेशन के नियमों का पालन करने के बजाय घूम-फिर रहे हैं, जिससे दूसरों में भी कोरोना वॉयरस का संक्रमण होकर और व्यापक रूप से फैलने की आशंका है। परिवार वाले भी अपने रसूख पर मुग्ध हैं। उन्हें पता है कि प्रशासन कोई सख्त कार्रवाई नहीं कर सकेगी। इसलिए होम आइसोलेशन, क्वारंटाइन के लिए जारी निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं।
अंत में एक सवाल-ऐसे लोगों का क्या करना चाहिए????