Sunday 5 April 2020

कोरोना का रायता और दर्द अपना-अपना-3

मयखानों की खामोश दहाड़...और हिल गई सरकार


धर्मग्रंथ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मस्जिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।
कालजयी रचना मधुशाला की इन पंक्तियों में डा. हरिवंश राय बच्चन ने मदिरालाय आने वालों को धार्मिंक बंधनों से मुक्त बताया है। सही भी है। मयखाने में आने वाला जैसे ही दो पैग गले से नीचे से उतारता है, वह जाति-धर्म विहीन हो जाता है। उसके अंदर से ज्ञान की गंगा बहने लगती है। और कुछ लोगों के ज्ञान की गंगा को उलटी दिशा में भी बहने लगती है। खैर इस विषय पर लंबी चर्चा हो सकती है। हम बच्चन साहब की मधुशाला को पकड़ते हैं। मधुशाला की तरह सरकारें भी मयखानों को हर बंदिशों-नियमों से दूर रखना चाहती है। चाहे लॉकडाउन जैसे हालात ही क्यों न हो। यह मदिराप्रेमियों के दारू के प्रति अथाह प्रेम का ही नतीजा है। सरकार इस प्रेम का दिल खोलकर सम्मान करना चाहती है। और जुगाड़ में लगी भी है कि लॉकडाउन खत्म होने से पहले ही सूने पड़े मदिरालाय आबाद हो जाए। गुलजार हो जाए। 
खामोश दहाड़...
किसी व्यवस्था को बंद या शुरू कराने के लिए लोगों को काफी शोर मचाना पड़ता है। उनकी आवाज सड़क से लेकर संसद तक गूंजती है। तब कुछ बदलाव हो पाता है, लेकिन हमारा प्रदेश इतिहास रचने की तैयारी में है। लॉकडाउन में शराब दुकानें खोलने की तैयारी है। यह एक बदलाव है। यह बदलाव शोर, हंगामे की वजह से नहीं बल्कि एक खामोशी
के चलते हुआ है। और यह खामोशी दारू भ_ी में है। बारों में है। होटल-ढाबों में हैं। ये खामोशियां ही सरकार को भयानक दहाड़ और गर्जना के रूप सुनाई दे रही है। इस खामोश दहाड़ से सरकार कांपने लगी है। खामोश दहाड़ ज्यादा दिन तक चलती है, तो सरकार की सांसे भी लडखड़़ाने लगती है। उसे आक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है। आक्सीजन की पूर्ति तभी होगी, जब मदिरालयों की खामोशी टूटेगी और बार में हलचल बढ़ेगी। 
पियक्कड़ समाज की नाराजगी
पियक्कड़ समाज प्रदेश का सबसे प्रगतिशील समाज है। इनका दायरा राज्य में चक्रवृद्धि ब्याज की तरह बढ़ता जा रहा है। कोरोना वॉयरस के चलते पहली बार समाज पर ऐसी विपदा आई है। इतने दिनों तक मदिरालयों में कभी ताला नहीं लगा है। समाजजनों को कभी दो पैग के लिए भटकना नहीं पड़ा। यह घोर कलयुग है। समाज के लोग दिनभर दो पैग की जुगाड़ में घूम रहे हैं। घर का कामकाज, बीवी-बच्चों की चिंता छोड़कर सुबह से शाम तक जुगाड़ में ही भटक रहे हैं। पुराने ठेकेदारों से लेकर मोहल्ले छोटा वाला कोचिया तक सब को खंगालते हैं। पियक्कड़ समाज को इससे भी भयंकर नाराजगी है कि कालाबाजारी भी शुरू हो गई है। 100 रुपए का गोवा 300 रुपए हो गया है। 200 की बीयर 400 से 500 रुपए में खरीदना पड़ रहा है। और 800 रुपए में मिलने वाला आरएस का बॉटल 2000 रुपए में ले रहे हैं। समस्या गंभीर है, लेकिन पियक्कड़ समाज कहीं कोई शोर नहीं मचा रहा है। फिर भी सरकार इस खामोशी को गंभीरता से ले रही है।
चेतावनी की चूक पड़ रही भारी
पियक्कड़ समाज देश के प्रधानमंत्रीजी से भी नाराज हैं। पियक्कड़ों का मानना है कि लॉकडाउन की घोषणा करने से पहले कम से कम एक दिन की मोहलत तो देते, ताकि दारू का भरपूर स्टॉक कर लेते। बार और होटल वाले भी दो नंबर में भरपूर माल भर लेते। लेकिन किसी को मौका ही नहीं दिया गया। हर राष्ट्रीय पर्व और होली-दिवाली में दुकान बंद की सूचना पहले से देने की परपंरा रही है। इस परंपरा को भी तोड़ दिया गया। सब कुछ अचानक कर दिया गया। अब तक प्रधानमंत्रीजी की घोषणा से उनके विरोधियों को ही झटका लगता था, लेकिन पहली बार पियक्कड़ समाज भी आहात हुआ है।  
जुगाड़ है क्या?
पियक्कड़ समाज से जुड़े लोगों के जुबान में सुबह-शाम एक ही वाक्य दौड़ रहा है। जुगाड़ है क्या? कुछ लोग इतने बेचैन हैं कि पौवा नहीं सीधे बॉटल ही खरीद रहे हैं। पता नहीं लॉकडाउन आगे बढ़ गया, तो क्या होगा? होटल-बार वालों ने भी इसका जमकर फायदा उठाना शुरू कर दिया है और जमकर चांदी काट रहे हैं। कुछ लोग तो अपने पुराने पुलिस मित्रों को भी कहने से नहीं हिचक रहे हैं। 
शहादत रंग लाएगी
पियक्कड़ समाज को गोलबाजार इलाके के अपने तीन साथियों की शहादत पर गर्व है। उन्हें उम्मीद है कि तीनों साथियों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। दारू के लिए उन्होंने अपने बीवी-बच्चों तक को भुला दिया। उनके इस त्याग का समाज सदा आभारी रहेगा। तीनों ने खतरनाक पदार्थ पीकर यह संदेश दिया कि शराब नहीं मिलने से उन्होंने यह कृत्य किया है। उनकी शहादत की खबर नेतानगरी में गूंज रही है। अब पियक्कड़ समाज को उम्मीद है कि उनके साथियों की शहादत रंग लाएगी और भ_ी जल्द खुलेगी।
सुकून में है थानेदार
भट्ठी और बार बंद होने से मदिराप्रेमी परेशान हैं, लेकिन थानेदारों को सुकून है। पीने के बाद होने वाली मारपीट, छिलटई की घटनाएं बंद हो गई हैं। महिलाओं की पति द्वारा मारपीट वाली शिकायतें भी थाने में कम आने लगी हैं। दूसरी बड़ी राहत है कि शराब बंद होने से कई जगह सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है, नहीं तो दिमाग का आधा हिस्सा उधर ही खर्च करना पड़ता।  
दर्द की बात...
लॉकडाउन के चलते शहर में सबकुछ बंद है। आवश्यक चीजें अनाज, सब्जी, दूध और दवा को छोड़कर। शराब को न आवश्यक माना गया है और न ही अनावश्यक। यह बीच में लटका हुआ है। लॉकडाउन में सभी शराब दुकान और बार 14 अप्रैल तक बंद हैं। सरकार का दर्द है कि भ_ी बंद होने से हो रहे भारी नुकसान की भरपाई कैसे करें? शराब कारोबारियों और मदिराप्रेमियों की खामोश दहाड़ को कैसे शांत कराया जाए? दूसरी ओर सरकार के इरादे भांपकर पुलिस वालों का दर्द भी शुरू हो गया है। 

अंत में एक सवाल-शराब दुकान, बार खुलने के बाद नशे में धुत व्यक्ति क्या सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेगा? क्या उसकी हरकतों से आम लोगों का जीवन खतरे में नहीं पड़ेगा...???

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