Tuesday 7 April 2020

कोरोना का रायता और दर्द अपना-अपना-4

नेता भैया और नए उगे समाज सेवक


अपने अंदर छुपी प्रतिभा को उभारने का अवसर हर इंसान को मि
लता है। कुछ कर्मवीर तो सूखे में भी कुंआ खोदकर नदिया बहा देते हैं। ऐसी प्रतिभा केवल नेताओं और नेतानुमा लोगों में ही पाई जाती है। मौका कोई भी हो। खुशी हो या दुख का, उसे एक सुनहरे अवसर के रूप में बदल लेते हैं। इसमें वे महारत होते हैं। अब कोरोना वॉयरस संक्रमण से बने हालात को ही ले लीजिए। लोग वॉयरस से संक्रमित भले नहीं हैं, लेकिन मानसिक और आर्थिक क्षति के चलते शारीरिक क्षति की ओर बढ़ रहे हैं। इस मुश्किल घड़ी ने भी नेता भैया और नेतानुमा भैया को सुनहरा अवसर दे दिया है। मदद के बहाने सुबह-शाम घरों और मोहल्लों में पहुंच रहे हैं। लोगों के हमदर्द बनकर। नेता भैया और नेतानुमा भैया ने अपने निठल्ले चमचों को भी इसी काम में लगा दिया है। निठल्ले सुबह से उठते हैं और घूम-घूमकर लॉकडाउन के साइड इफैक्ट से पीडि़त गरीबों को ढूढ़ते हैं, ताकि उनकी कुछ मदद करते हुए अगले दिन अखबारों में नेता भैया का चेहरा चमक जाए। या किसी अपरिपक्व इलेक्ट्रानिक-वेबपोर्टल में दिख जाए।
सेवाभाव की क्रांति..
लॉकडाउन के बाद शहर में नेता भैया और नेतानुमा भैया के अलावा बड़ी संख्या में समाज सेवक उग आए हैं, जिन्हें किसी तरह की वैचारिक, सांस्कृतिक खाद नहीं मिली है। केवल मौका देखा और उग आए। शहर में इन दिनों इतने समाज सेवक दिख रहे हैं कि जरूरतमंदों और गरीबों का टोटा हो गया है। जिधर देखो
उधर समाज सेवक सामान बांटने के लिए घूमता नजर आ रहा है। नेता भैया और नेतानुमा भैया के साथ इतने सारे समाज सेवक सक्रिय हैं, मानो सेवाभाव की क्रांति आ गई है।
फोटो खींचवाना जरूरी
नेता भैया, नेतानुमा भैया और अभी-अभी उगे समाज सेवक अपने चेले चपाटियों के साथ आठ-दस लोगों का भोजन, पानी, मास्क, राशन जो भी सस्ता हो, लेकर निकलते हैं। और किसी मोहल्ले में जो भी मिल जाए, उन्हें बांटते हैं। सामान बांटते हुए फोटो जरूर खींचवाते हैं। फोटो खिंचवाते तक वितरण जारी रहता है, जैसे ही फोटो सेशन खत्म होता है। धीरे से वितरण कार्यक्रम भी समाप्त हो जाता है।
दो नेता भैया में कॉम्पीटिशन
लॉकडाउन के चलते नेता भैयाओं में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने और सेवा भाव दिखाने की होड़ लग गई है। सभी ने अपने निठल्लों को इसी काम में लगा दिया है। कोई नेता भैया नगदी दान कर रहा है, तो कोई राशन, तो कोई कुछ और। सभी को चिंता है कि कोई उससे आगे न निकल जाए। रायपुर के थोड़ा पुराने नेता भैया और कुछ दिन पहले बड़े नेता बने नेता भैया में जबरदस्त काम्पीटिशन चल रहा है। एक नेताभैया अपने इलाके में सक्रिय है, तो दूसरा नेता भैया पूरे रायपुर में घूम रहे हैं। दोनों में एक बात समान है कि दोनों फोटो अच्छा खिंचवाते हैं।
यहां क्यों नहीं करते ??? 
शहर की कई कॉलोनी, बस्ती और मोहल्लों में ऐसे लोग हैं, जिनके पास कोई राशन कार्ड नहीं है और रोज कमाते हैं, तब उनके घर चूल्हा जलता है। हर वार्ड में ऐसे सैकड़ों लोग हैं। क्या उन घरों में राशन पहुंच रहा है? क्यों उनके घर कोई बीमार है? हर पार्षद अपने इलाके में घूम-घूमकर यह देख सकता है और उनकी मदद कर सकता है।
अब दर्द की बात
जिस तरह से नेता भैया, नेतानुमा भैया और नए उगे समाज सेवक सक्रिय हो गए हैं, उससे सोशल डिस्टेंसिंग का मैनेजमेंट गड़बड़ा गया है। ऐसा न हो कि मदद के चक्कर में कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ जाए। प्रशासन का दर्द है कि इन नेता भैया और नेतानुमा भैया को कैसे सोशल डिस्टेंसिंग समझाएं? नए उगे समाज सेवकों को तो एक बार समझा भी सकते हैं, लेकिन असली दर्द तो नेता और नेतानुमा भैया की है। उनका क्या किया जाए?

No comments: